व्यापार संतुलन क्या है ? (What is Balance of Trade)
संकुचित अर्थ में, किसी देश के कुल निर्यातों एवं कुल आयातों के अंतर का ही व्यापार संतुलन है। विस्तृत अर्थ में किसी वर्ष विशेष में एक देश द्वारा विभिन्न देशों को किये गये निर्यात मूल्यों के समग्र योग में से यदि उस देश के द्वारा विभिन्न देशों से किये गये आयात मूल्यों के समग्र योग को घटा दें तो उनका अंतर ही व्यापार संतुलन कहलाता है।
स्केमैल के शब्दों में, “व्यापार संतुलन एक देश के निवासियों द्वारा विदेशियों को बेचों गयी वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य एवं उस देश के निवासियों द्वारा विदेशियों से खरीदी गई वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों का अंतर होता है।” इस प्रकार व्यापार संतुलन किसी निश्चित समयावधि में (जो प्रायः एक वर्ष होती है) एक देश द्वारा विश्व के सभी देशों को किये गये कुल निर्यात मूल्यों के समग्र योग एवं उसके द्वारा शेष विश्व से किये गये कुल आयात मूल्यों के समग्र योग के अंतर को कहते हैं। किसी देश के व्यापार संतुलन को अग्रांकित सूत्रों में भी प्रकट किया जा सकता है-
भुगतान संतुलन (What is Balance of Payment)
भुगतान संतुलन एक निश्चित समयावधि में एक देश कर शेष विश्व के साथ सम्पर हुए मौद्रिक व्यवहारों का अभिलेख है। अन्य शब्दों में, एक देश के निवासियों एवं शेष विश्व के बीच किये गये समस्त लेनदेनों का सारांश ही भुगतान संतुलन कहलाता है।
भुगतान संतुलन की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
(1) हेन सन के शब्दों में, ” भुगतान संतुलन का एक देश का अन्य देशों से प्रातियों एवं उसके द्वारा शेष विश्व को किये गये भुगतानों के बीच संबंध को दर्शाता है। इस प्रकार वास्तव में यह एक देश के अन्तर्राष्ट्रीय खाते का पक्का चिट्ठा है।”
(2) वाल्टर क्रास के अनुसार, “भुगतान संतुलन किसी देश के निवासियों और शेष विश्व के निवासियों के बीच, किसी निश्चित समयावधि (सामान्य रूप से एक वर्ष) में पूर्ण किये गये समस्त आर्थिक व्यवहारों का एक व्यवस्थित अभिलेख है।”
(3) हेबरलर के अनुसार, “भुगतान संतुलन शब्द का प्रयोग सम्पूर्ण माँग एवं पूर्ति बिंधी परिस्थिति (विदेशी मुद्रा की) के अर्थ में किया जाता है और यही अर्थ है, जिसमें भुगतान अतुल की अवधारणा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विवेचनों में सर्वाधिक प्रयोग होती है।”
इस प्रकार भुगतान संतुलन किसी देश और बाकी विश्व के निवासियों, व्यापारियों, सरकार एवं अन्य संस्थाओं के बीच किसी समय विशेष में किये गये समस्त विनिमय, बस्तुओं के हस्तान्तरण एवं सेवाओं के भौतिक मूल्य तथा ऋण या स्वामित्व की उचित वर्गीकरण के साथ प्रदर्शित करता हुआ विवरण है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर भुगतान संतुलन में निम्नलिखित विशेषताएँ देखने को मिलती हैं
(1) भुगतान संतुलन किसी देश का शेष विश्व के साथ हुए सम्पूर्ण आर्थिक लेन-देनों का विस्तृत ब्यौरा होता है।
(2) यदि प्राप्त मुद्राओं का कुल मूल्य, भुगतान से अधिक है तो इस स्थिति में भुगतान संतुलन पक्ष में कहलाता है।
(3) भुगतान संतुलन में दृश्य व अदृश्य व्यापार की समस्त वस्तुओं व सेवाओं का समावेश किया जाता है।
(4) भुगतान संतुलन सदैव संतुलित रहता है, क्योंकि अन्तर की पूर्ति स्वर्ण या ऋणों के लेद-देन से पूरी की जाती है।
(5) भुगतान संतुलन का निरन्तर घाटा देश को विदेशी विनिमय संकट में धकेल सकता है।
भुगतान संतुलन की प्रमुख मदें (Main Items of Balance of Payment)
(1) वस्तुओं का आयात-निर्यात किसी भी देश में निर्यातित कुल माल का मूल्य और देश में आयातित माल के मूल्य का भुगतान संतुलन पर सीधा और महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। वस्तुओं के आयात-निर्यात को दृश्य व्यापार कहा जाता है और आयात-निर्यात के अंतर को व्यापार संतुलन कहा जाता है।
(2) सेवाओं का आयात-निर्यात विकसित देश अन्य देशों में न केवल अधिक वस्तुएँ ही आयात व निर्यात करते हैं, बल्कि विदेशों को अन्य कई प्रकार की सेवाएँ भी प्रदान करते हैं। प्रमुख सेवाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) व्यापारिक कम्पनियों द्वारा दी गई सेवाएँ जब देश की बीमा, बैंक, जहाज या सामुद्रिक जहाजी कम्पनियाँ अन्य देश के लोगों को बीमा, वित्तीय सेवाएँ या परिवहन या व्यापारिक सेवाएँ प्रदान करती हैं तो उससे भुगतान प्राप्त होते हैं। इसके विपरीत जब ये सेवाएँ हो जाती हैं तो भुगतान करना पड़ता है।
(ii) विशेषज्ञों की सेवाएँ आजकल विभिन्न राष्ट्र अन्य देशों से विशेषज्ञों, चिकित्सकों, प्रोफेसरों, इंजीनियरों आदि की सेवाओं का आयात-निर्यात करते हैं। इन सेवाओं को भी भुगतान संतुलन में शामिल किया जाता है।
(iii) शिक्षा संबंधी व्यय प्रत्येक देश अपने छात्रों को विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत विदेशों में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजते हैं। इनके ऊपर व्यय होता है तथा भुगतान भी प्राप्त होते हैं।
(iv) यात्री सेवाएँ जब देश में विदेशी यात्री आते हैं तो उनके द्वारा देश में किया गया व्यय विदेशी मुद्रा में प्राप्त होता है। पर जब देश के यात्री विदेशों में भ्रमण हेतु जाते हैं तो उनके सात्रा व्यय का भुगतान विदेशी मुद्रा में चुकाना पड़ता है।
(3) विदेशी ऋण, विनियोग, मूलधन वापसी, ब्याज व लाभांश जब देश को विदेशों से ऋण प्राप्त होता है या देश में विदेशी विनियोग किये जाते हैं अथवा देश के ऋण एवं विनियोग की देश में वापसी होती है तथा जब देश को विदेशों से ब्याज एवं लाभांश का भुगतान प्राप्त होता है तो विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है और जब ये मदें दूसरे देशों को भेजी जाती हैं तो विदेशी मुद्रा का बहिर्गमन होता है। ये सभी विदेशी मुद्रा की माँग व पूर्ति को प्रभावित कर भुगतान संतुलन पर प्रभाव डालती है।
(4) सरकारी व्यय आजकल प्रत्येक देश की सरकार विदेशों में अनेक प्रकार के व्यय करती है। जब सरकार विदेशों में दूतावास संबंधी व्यय, शिष्टमण्डलो संबंधी व्यय या राजकीय स्तर पर कोई व्यय करती है, तो उनका भुगतान विदेशी मुद्रा में किया जाता है पर जब विदेशी सरकारें इसी प्रकार का व्यय देश में करती हैं तो देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। इस प्रकार यह मद भी विदेशे मुदा की माँग व पूर्ति को प्रभावित कर भुगतान संतुलन पर प्रभाव डालता है।
(5) जनसंख्या आवागमन व्यय-जब एक देश के नागरिक दूसरे देश में जाकर बस जाते हैं तो वे अपनी सम्पत्ति आदि धन अपने साथ दूसरे देश में ले जाते हैं, जिन देशों में जनसंख्या का आवास होता है। वे अपना धन देश में लाकर विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ाते हैं। इस प्रकार जनसंख्या के आवास प्रवास से भी भुगतान संतुलन प्रभावित होता है।
(6) विदेशी दान, हर्जाना आदि हस्तान्तरण जब किसी देश को अन्य विदेशी राष्ट्रों के निवासियों या सरकारों से दान, हर्जाना, मुआवजा, दण्ड या अन्य हस्तान्तरण के रूप में भुगतान प्राप्त होते हैं तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है। पर जब किसी देश को दूसरे राष्ट्रों को ये भुगतान करने पड़ते हैं तो विदेशी मुद्रा की माँग होती है। इस प्रकार के भुगतानों और प्रातियोंसे भुगतान संतुलन प्रभावित होता है।