क्रय शक्ति समता सिद्धान्त (Purchasing Power Theory)
क्रय शक्ति समता सिद्धान्त का संबंध स्टॉक होम (स्वीडन) विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. गुस्ताव कैसिल (Gustave Cassel) से जोड़ा जाता है। किन्तु वास्तव में इस अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्त सिद्धान्त का प्रतिपादन सर्वप्रथम 1802 ई. में जॉन द्विटले (John Wheatley) द्वारा अपनी पुस्तक (Remark on Currency and Commerce) में किया गया था। तत्पश्चात् विलियम अलैका ने 1801 ई. में इसको ब्याख्या की और डेविस रिकार्डों द्वारा इसका स्पष्टीकरण किया गया। अंत में, स्वीडन के अर्थशास्त्री प्रो. कैसिल द्वारा इन सभी को आधार बनाकर (1914-1948 ई. के मध्य) इस सिद्धान्त का पूर्ण विकास किया गया। उन्होंने ही इस सिद्धान्त की कार्यप्रणाली की समझाने के लिए क्रय शति समता (Purchasing Power Parity) वाक्यांश का प्रयोग किया था। इसलिए इस सिद्धान्त से इनका संबंध जीड़ा जाना उचित प्रतीत होता है। इस सिद्धान्त के दो पहलू है- प्रथम पहलू, धनापक रूप (Positive aspect) हैं, जिनके अन्तर्गत दो अपरिवर्तनीय मुद्राओं के बीच विनिमय दर का निर्धारण किया जाता है और द्वितीय पहलू विनिमय दरों में होने वाले उच्चावचों के कारण व इनकी सीमाओं से संबंधित हैं।
सामान्यतः विदेशी मुद्राओं के मूल्य स्तरों में पारस्परिक संबंधों के आधार पर निश्चित होने वाली विनिमय दरों को क्रय-शक्ति समता कहते हैं। दूसरे शब्दों में, क्रय शक्ति समता बिन्दु यह बिन्दु है जहाँ पर एक देश की मुद्रा की निश्चित माँग की क्रय शक्ति दूसरे देश की मुद्रा की निश्चित मात्रा क्रय शक्ति के अनुसार बराबर होती है।
क्रय शक्ति समता सिद्धान्त की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी जा सकती है
(1) प्रो. केन्स के शब्दों में, “दो मुद्राओं के मध्य विदेशी विनिमय दर उसी प्रकार परिवर्तित होती रहती है, जिस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय निर्देशांक घटता बढ़ता है।”
(2) प्रो. जी.डी.एच. कोल के मतानुसार, “राष्ट्रीय मुद्राओं का पारस्परिक मूल्य ती स्वर्णमान को अपनाते हुए नहीं हैं, दीर्घकाल में विशेषतः उनकी वस्तुओं और सेवाओं की क्रय शक्ति से निश्चित होता है।”
(3) एस. ई. थॉमस के अनुसार, “विनिमय दर की स्थिति होने की प्रवृत्ति इसी बिन्दु पर होती है, जहाँ दोनों देशों की मुद्राओं की क्रय-शक्ति समान होती है। इस बिन्दु को ही क्रय शक्ति समता कहते हैं।”
इस प्रकार विदेशी मुद्राओं का मूल्य उनकी क्रय शक्ति पर आधारित होता है। इस प्रकार मूल्य स्तरों के
पारस्परिक संबंधों के आधार पर निश्चित होने वाली विनिमय दर को क्रय-शकि समता कहते हैं। क्रय-शक्ति समता बिन्दु वह बिन्दु है, जहाँ पर एक देश को मुद्रा का निश्चित माँग की क्रय-शक्ति दूसरे देश की मुद्रा की निश्चित मात्रा क्रय-शक्ति के अनुसार बराबर होती है। जैसे-यदि अमेरिका में 100 डॉलर से 50 वस्तुएँ एवं अन्य वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं,
प्रो. फैसिल ने क्रय शक्ति समता सिद्धान्त के मुद्राओं की विनिमय दरों में होने पाले परिवर्तनों को ज्ञात करने की विधि भी व्यक्त की है। उनके अनुसार जब दो देशों की मुद्राओं का अवमूल्यन हो जाता है तो उनके बीच सामान्य विनिमय दर दोनों देशों में मुद्रा स्फीति (Inflation) की मात्रा के भाजनफल (Quotation) को पुरानी विनिमय दर से गुणा करके इन दोनों देशों को क्रय-शक्ति समता ज्ञात की जा सकती है।