प्रबन्ध की प्रकृति, Nature of Management

Nature of Management: प्रकृति किसी विषयवस्तु के स्वभाव के दृष्टिकोण को व्यक्त करती है। प्रबन्ध का विकास धीरे-धीरे हुआ है, अतः इसकी विषयवस्तु में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। प्रत्येक प्रबन्धशास्त्री ने प्रबन्ध को अपने-अपने दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया है। परिणामस्वरूप प्रबन्ध की प्रकृति के बारे में विभिन्न विद्वानों के विभिन्न मत पाये जाते हैं, जैसे-

(1) फेयोल के अनुसार, प्रबन्ध एक सार्वभौमिक तत्व है।

(2) टेलर के अनुसार, प्रबन्ध एक विज्ञान है।

(3) ब्रेच के अनुसार, प्रबन्ध, एक सामाजिक प्रक्रिया है।

(4) एप्पले के अनुसार, प्रबन्ध एक मानवीय तत्व है।

(5) टैरी के अनुसार, प्रबन्ध एक प्रक्रिया है।

उपर्युक्त विद्वानों एवं प्रबन्ध विचारकों के मतों को ध्यान में रखते हुए प्रबन्ध की प्रकृति को इस प्रकार वर्णित एवं विवेचित किया जा सकता है।

(1) प्रबन्ध जन्मजात एवं अर्जित प्रतिभा के रूप में-परम्परागत प्रबन्ध की यह कि “प्रबन्ध एक जन्मजात प्रतिभा है।” उनकी यह मान्यता है कि प्रबन्धक जन्म धारणा रही है कि ” लेते हैं, बनाये नहीं जाते क्योंकि कुछ व्यक्ति जन्म से ही योग्य, साहसी, कुशल एवं दूरदर्शी होते हैं। इसलिए प्रबन्ध, संगठन एवं नेतृत्व जैसे कार्य कर लेते हैं, जैसे-टाटा, बिड़ला, डालमिया एवं बजाज आदि। यद्यपि यह मान्यता कुछ सीमा तक सही है, किन्तु इसे पूर्णतया सही नहीं माना जा सकता है।

वर्तमान परिस्थितियों में स्वामित्व एवं प्रबन्ध दोनों अलग-अलग हो गये हैं और प्रबन्धकों का स्थान प्रबन्ध शिक्षा प्राप्त व्यक्ति ग्रहण करने लगे हैं। इसलिए प्रबन्ध को केवल एक जन्मजात प्रतिमा के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अपितु एक अर्जित प्रतिभा के रूप में भी स्वीकार किया जाता है।

(2) प्रबन्ध एक पेशे के रूप में-पेशा एक आर्थिक प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति अपने विशिष्ट ज्ञान, शिक्षण-प्रशिक्षण, आचार संहिता एवं अनुभव के आधार पर विशेष प्रकार की सेवाएँ दूसरे व्यक्तियों को देकर फीस के रूप में प्रतिफल प्राप्त करता है। इन बातों को देखते हुए विद्वान कहते हैं कि प्रबन्ध एक पेशा है क्योंकि यह ज्ञान की व्यवस्थित शाखा है, इसका औपचारिक शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाता है, इसकी प्रतिनिधि संस्था है, यह सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। इतना होते हुए भी कुछ विद्वान् प्रबन्ध को पेशा नहीं मानते हैं क्योंकि इसमें पेशे की समस्त विशेषताएँ नहीं पायी जाती हैं।

इस प्रकार यह स्पष्ट हैं कि प्रबन्ध पूर्णरूपेण पेशा तो नहीं है, किन्तु वर्तमान समय में एक पेशे के रूप में उभरता जा रहा है। इस सन्दर्भ में लोवेल ने कहा कि “प्रबन्ध सबसे वृद्धकला तथा सबसे जवान पेशा है।”

(3) प्रबन्ध विज्ञान एवं कला के रूप में- सामान्य विज्ञान का अर्थ अवलोकन एवं प्रयोग से लिया जाता है। क्या प्रबन्ध विज्ञान है या नहीं? इसके प्रत्युत्तर में यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध एक विज्ञान है क्योंकि इसमें विज्ञान के ये गुण होते हैं- सुव्यवस्थित ज्ञान, सिद्धान्तों का प्रतिपादन, कारण एवं परिणाम में सम्बन्ध, सार्वभौमिकता आदि। लेकिन प्रबन्ध शुद्ध/वास्तविक अथवा व्यावहारिक, आदर्श विज्ञान। प्रबन्ध व्यावहारिक विज्ञान है क्योंकि इसका सम्बन्ध मानव से होता है, जिसमें अनुभव एवं सूझबूझ का उपयोग किया जाता है।

चातुर्य के प्रयोग से इच्छित परिणाम प्राप्त करने को कला कहते हैं। क्या प्रबन्ध कला है? हाँ, क्योंकि प्रबन्धक अपनी चातुर्यता का उपयोग करता है, प्रबन्ध का सम्बन्ध मानवीय व्यवहार से होता है, प्रबन्धकला का हस्तान्तरण कठिन है प्रबन्ध कला स्थितिपक है एवं इसमें व्यावहारिक अनुभव का अधिक महत्त्व है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रबन्ध विज्ञान एवं कला दोनों है. चाहे इनका प्रतिशत स्टेनली के अनुसार 10% विज्ञान एवं 90% कला और टेलर के अनुसार 25% विज्ञान एवं 25% कला हो।

(4) प्रबन्ध एक प्रक्रिया के रूप में- प्रबन्ध एक मानसिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है, क्योंकि इसका कार्य मस्तिष्क से किया जाता है और इसका सम्न्ध मानसिक क्रियाओं एवं व्यवहार से होता है। बैच के अनुसार, “प्रबन्ध एक सामाजिक प्रक्रिया है, इसके अन्तर्गत संगठन में क्रियाओं का प्रभावी नियोजन एवं नियमन सन्निहित है। यही नहीं, स्टेनलेवेन्स ने भी कहा है कि, प्रबन्ध प्रक्रिया में इन भागों का वर्णन किया है-कार्यविधि का निर्धारण, आवश्यक भौतिक साधनों की प्राप्ति, अन्य व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करना, मार्गदर्शन एवं पर्यवेक्षण और कर्मचारियों के कार्य करने हेतु अभिप्रेरणाएँ आदि।”

इस प्रकर स्पष्ट है कि प्रबन्ध उपक्रम के पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सामूहिक प्रयासों का नियोजन, संगठन, समन्वय, निर्देशन एवं नियन्त्रण करने की एक मानसिक एवं सामाजिक प्रक्रिया है।

(5) प्रबन्ध एक प्रणाली के रूप में- प्रणाली विभिन्न वस्तुओं या भागों में ऐसा संयुक्तीकरण या संयोजन है, जिससे एक जटिल इकाई बनती है। प्रबन्ध एक प्रणाली है क्योंकि इसके कई उप-तंत्र हैं, जैसे-उत्पाद, विपणन, वित्त, सेवीवर्गीय आदि। इस व्यावसायिक तन्त्र का प्रत्येक विभाग अपने आप में स्वतन्त्र होते हुए भी परस्पर अन्तः सम्बन्धित है। यही नहीं, प्रबन्ध इसलिए भी प्रणाली है यह आगत एवं स्थानान्तरण प्रक्रिया निर्गत एवं पुनर्निवेशन का युग्मन है।

(6) प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में-प्रबन्ध एक गतिशील प्रक्रिया है क्योंकि यह देश-विदेश में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक क्षेत्र में हुए परिवर्तन के अनुसार कार्य करता है। इसके अतिरिक्त प्रबन्ध की विधियाँ, तकनीकें, साधन एवं सिद्धान्त भी समय, वातावरण एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं। डाल्टन ई. मैक्फारलैण्ड ने कहा कि, “प्रबन्ध की प्रकृति, गतिशील (Dynamic) है और परिवर्तन संगठनात्मक जीवन की वास्तविकता है।”

(7) प्रबन्ध एक सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में – सामाजिक उत्तरदायित्व का आशय किसी समाज की महत्त्वाकांक्षाओं को समझाना, मान्यता देना और उनकी उपलब्धियों में सहयोग देने का निश्चय करना है। प्रबन्ध समाज का एक अभिन्न अंग है, इसलिए अच्छे रोजगार के अवसर बनाये रखना, साधनों का समाज के हित में प्रयोग करना और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बनाये रखना, प्रबन्धकों का समाज के प्रति एक उत्तरदायित्व है। इसके अतिरिक्त सरकारी नीतियों में सहयोग देना, कालाबाजारी न करना, सही कर (Tax) का भुगतान करना आदि ऐसे उत्तरदायित्व हैं, जिन्हें प्रबन्ध को सरकार के प्रति पूरे करने चाहिए।

(8) प्रबन्ध एक सार्वभौमिक रूप में- प्रबन्ध सार्वभौमिक है क्योंकि यह समस्त संगठित उपक्रमों में व्याप्त प्रक्रिया है। इसके सिद्धान्तों एवं विचारधारा को विश्व में समान रूप से सभी उपक्रमों में लागू किया जा सकता है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था में प्रबन्धकीय ज्ञान एवं कार्यों की आवश्यकता होती है। हेनरी फेयोल के अनुसार, “चाहे वह वाणिज्य, उद्योग, राजनीतिक, धर्म, युद्ध हो अथवा लोकोपकार प्रत्येक संस्था में प्रबन्धकीय सिद्धान्तों की आवश्यकता होती है।

(9) प्रबन्ध एवं विधा (Discipline) के रूप में-जिस प्रकार मानव की सेवा एवं उसका विकास करने के लिए अनेक विधाएँ- कला, विज्ञान, वाणिज्य, कानून, चिकित्सा एवं इन्जीनियरिंग हैं, उसी प्रकार प्रबन्ध भी एक विधा है, जिसका अध्ययन विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में किया जाता है। प्रत्येक विधा की कुछ विशेषताएँ होती हैं-विधा के अनेक अनुयायी, अनुयायी नियमित ज्ञान की खोज, ज्ञान को स्त्यापित एवं प्रचार करते हैं। इस प्रकार इन सभी विशेषताओं को पूर्ण करता है, इसलिए प्रबन्ध एक विधा है।

Leave a Comment