प्रबन्ध को विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता का मूल्यांकन क्यों करना चाहिये ?, Why should management evaluate the effectiveness of advertising

आज प्रत्येक उत्पादक या निर्माता यह चाहता है कि उसके द्वारा किया‌ गया संवर्द्धन व्यय कारगर सिद्ध हो। अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक प्रबन्धक यह जानने का प्रयास करे कि संवर्द्धन प्रयासों तथा विज्ञापन से वास्तव में विक्रय वृद्धि हो रही है या नहीं। विज्ञापन कार्यक्रम के दौरान कई अवस्थाओं में प्रबन्धकों को चाहिए कि जो कुछ किया है या भविष्य में करने की योजना है, उसे सावधानी से मूल्यांकित करे। एक कम्पनी के वैज्ञानिक विज्ञापन कार्यक्रमों का अन्तिम एवं पर्याप्त महत्त्वपूर्ण अंग विज्ञापन कार्यक्रमों की प्रभावोत्पादकता का मूल्यांकन करना है। इस मूल्यांकन द्वारा प्रबन्धक वर्ग यही निश्चित करता है कि उसके विज्ञापन कार्यक्रम विज्ञापन उद्देश्यों को प्राप्त करने में किस सीमा तक असफल रहे हैं? कम्पनी के प्रबन्धकों को विज्ञापन पर व्यय करके ही संतुष्ट नहीं होना चाहिए अपितु उन्हें चाहिए कि इस सम्बन्ध में जो कुछ किया गया है या भविष्य में योजना है, उसे सावधानीपूर्वक मूल्यांकित भी करे।

विज्ञापन कार्यक्रमों का महत्त्व निम्नांकित तत्त्वों से भी स्पष्ट हो जाता है-

(i) वर्तमान प्रतिस्पर्द्धात्मक जगत में उत्पादक यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि कौनसे विज्ञापन अन्य विज्ञापनों से बेहतर और वे क्यों बेहतर हैं ? विज्ञापन पर व्यय की जाने वाली राशि सार्थक भी हों रही है या नहीं, यह ज्ञात करने के लिए विज्ञापन कार्यक्रमों का मूल्यांकन करना अति आवश्यक है।

(ii) घटते हुए लाभ मार्जिन एवं बढ़ती हुई विदेशी प्रतिस्पर्द्धा ने प्रबन्धकों को इस बात के लिए विवश कर दिया है कि वे अपने समस्त व्ययों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करें।

(iii) विज्ञापन कार्यक्रमों के मूल्यांकन से यह भी पता चल जाता है कि विज्ञापन अभियान ने हमारे विज्ञापन सम्बन्धी उद्देश्य की कहाँ तक पूर्ति की है? एक उत्पादक संस्था के विज्ञापन सम्बन्धी मुख्य तीन लक्ष्य होते हैं-
(अ) कम्पनी के बारे में जन जागृति उत्पन्न करना,
(ब) कम्पनी की अच्छी प्रतिष्ठा उत्पन्न करना और
(स) उपक्रम की बिक्री में वृद्धि करना।
विज्ञापन कार्यक्रमों के मूल्यांकन द्वारा इनके विषय में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

सार रूप में, बड़ी मात्रा में व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा विज्ञापन पर धनराशि व्यय किये जाने के कारण इसकी प्रभावोत्पादकता का मूल्यांकन अनिवार्य हो गया है। यह प्रश्न है कि विज्ञापन की प्रभावोत्पादकता को कैसे मापा जाये? वास्तव में, यह एक जटिल समस्या है जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) विज्ञापन में “क्या कहा गया है” की प्रभावशीलता की गणना अत्यधिक कठिन है। वर्तमान में केवल विज्ञापन प्रस्तुतीकरण के प्रभाव को मापा जा सकता है,
लेकिन ‘क्या कहा गया है’, ‘वह किस सीमा तक प्रभावी रहा है’? का मूल्यांकन या प्रभावोत्पादकता को ज्ञात करना जटिल है। अन्य शब्दों में, मूल्यांकन का वर्तमान ढंग केवल इस बात को बताता है कि विचाराधीन विपणन अभियानों में कौनसा श्रेष्ठ है। मूल्यांकन यह नहीं बताता है कि सफलता प्राप्त करने के लिए किसी कार्यक्रम में क्या बातें शामिल की जानी चाहिए।

(2) प्रायः सभी प्रकार की व्यावसायिक संस्थाएँ विक्रय वृद्धि के लिए विज्ञापन के साथ अन्य संवर्द्धन विधियों का भी प्रयोग करती हैं। अतः विज्ञापन का प्रभाव कितनी (मात्रा में) रहा है, इसको पृथक् रूप में ज्ञात करना अत्यधिक जटिल होता है। संवर्धन मिश्रण में विज्ञापन की भूमिका अत्यधिक होती है।

(3) कुछ विज्ञापन दीर्घकालीन उद्देश्य के लिए विक्रय वृद्धि के संदर्भ में किये जाते हैं। अतः ऐसे विज्ञापन का प्रभाव भी सही तरीके से नहीं आँका जा सकता है।

(4) विज्ञापन प्रभावोत्पादकता के मूल्यांकन या माप की कोई उपयुक्त विधि भी नहीं है।

(5) कभी-कभी विज्ञापन या विज्ञापन कार्यक्रम का लक्ष्य तत्कालीन बिक्री को प्रोत्साहित करने के स्थान पर केवल सूचना प्रदान करना या कम्पनी की छवि निखारना होता है। जैसे नये उत्पाद का परिचय देना, कम्पनी की सेवा नीतियों की सूचना देना, संस्थागत विज्ञापन अपनाना, कारोबार घण्टों को सूचना देना आदि। ऐसे विज्ञापन अभियानों की प्रभावोत्पादकता ज्ञात करना कठिन होता है।

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