Definitions of Planning: इसका पूर्व निर्धारण नियोजन है। इसके अन्तर्गत विभिन्न वैकल्पिक उद्देश्यों, नीतियों, पद्धतियों एवं कार्यक्रमों में से चयन करना निहित है। अन्य शब्दों में, नियोजन का अर्थ निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपलब्ध वैकल्पिक नीतियों, विधियों एवं कार्यक्रमों में सर्वश्रेष्ठ का चयन करना है।
नियोजन की मुख्य-मुख्य परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
- हार्ट के शब्दों में, “नियोजन कार्यों की श्रृंखला का अग्रिम निर्धारण है जिसके द्वारा निश्चित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।”
- बिल्ली ई. गोत्ज के अनुसार, “नियोजन मूलतः चयन करना है और नियोजन की समस्या केवल उस समय उत्पन्न होती है, जब किसी वैकल्पिक कार्य पथ का पता चलता है।”
- हेन्स एवं मैसी के अनुसार, “नियोजन प्रबन्ध का वह कार्य है जिसके अन्तर्गत वह है इसका मूल भविष्य में निहित है।” क्या करेगा? यह एक विशेष प्रकार की निर्णयन प्रक्रिया
इस प्रकार नियोजन भावी परिस्थितियों का मूल्यांकन करते हुए पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम वैकल्पिक कार्य पथ का चयन करने की बौद्धिक प्रक्रिया है।
नियोजन प्रक्रिया Planning Process
नियोजन चाहे छोटी संस्था का हो या बड़ी संस्था उसे तर्कसंगत एवं व्यावहारिक बनाने हेतु प्रक्रिया का उपयोग करना पड़ता है। इस प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए कून्ट्र्ज एण्ड ओ’डोनेल, मेरी कुशिंग नाइल्स व टैरी आदि विद्वानों ने प्रक्रिया बनायी इन सभी के आधार पर नियोजन प्रक्रिया आवश्यक कदमाचरण बनायी जा सकती है।
(1) उद्देश्यों का निर्धारण-नियोजन प्रक्रिया का सर्वप्रथम कदम नियोजन के उद्देश्यका निर्धारण करना है। इसका कारण यह है कि उद्देश्य यह स्पष्ट करता है कि हमें मूलतः क्या करना है, कहाँ पर ध्यान केन्द्रित करना है, और नीतियों, कार्यविधियों, बजटों एवं कार्यक्रमों का क्या उपयोग करना है? अतः उद्देश्य सरल, बोधगम्य, वास्तविक एवं स्पष्ट होने चाहिए। फलस्वरूप अधिकारी एवं कर्मचारी उन्हें सरलता से समझ सकें एवं क्रियान्वित भी कर सकें।
(2) पूर्वानुमान लगाना – पूर्वानुमान का अर्थ उन मान्यताओं से है जिनका सम्बन्ध अनुमानित स्थिति या भावी स्थिति से होता है। अतः इनके सही अनुमान से नियोजन सफल हो सकता है अथवा नहीं क्योंकि ये आधार ही भविष्य के बारे में संगत, सम्बन्धित एवं महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं। इसलिए नियोजन के आधारों की स्थापना हेतु अनेक बातों की जानकारी करनी चाहिए, जैसे बाजार की स्थिति, माँग एवं पूर्ति का अनुपात, कीमतों की प्रवृत्ति एवं सरकारी नीति आदि। इस प्रकार इस कदम में तथ्यों का संग्रह, विश्लेषण, मान्यताओं का निर्धारण, सूचनाओं एवं समंकों की प्राप्ति इत्यादि आते हैं।
(3) वैकल्पिक मार्गों का निर्धारण –प्रायः किसी भी कार्य को करने के कई तरीके यानी विकल्प होते हैं। इसलिए नियोजन को सर्वप्रथम यह देखना चाहिए कि कार्य करने के कि विकल्प हैं। तत्पश्चात् इससे संबंधित तथ्यों, सूचनाओं, विश्लेषण, मान्यताओं एवं समको जी विस्तृत जानकारी करनी चाहिए।
(4) विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन-वैकल्पिक मार्गों का निर्धारण करने के पश्चा उन विकल्पों का सापेक्षिक लाभों एवं दोषों का अध्ययन करके मूल्यांकन करना चाहिए। नियोजक को विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन करते समय पर्याप्त सावधानी एवं सतर्कता से विकल्पों या लक्ष्य, उपलब्ध साधन, निहित जोखिम, प्रमाप, उपादेयता, लोचशीलता, सरलता एवं प्राप्त परिणामों के सन्दर्भ में जाँच करनी चाहिए।
(5) सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव-विभिन्न विकल्पों में से श्रेष्ठ विकल्प का मूल्यांकन करने के पश्चात् सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव किया जाता है। यही एक ऐसा महत्त्वपूर्ण कदम है। जिस पर निर्णय किया जाता है और यहीं से योजना का निर्माण होता है।
(6) योजना तैयार करना-नियोजन के इस कदम में विभिन्न पहलुओं पर विस्तार सें विचार किया जाता है, योजना की क्रमिक अवस्थाओं का निर्धारण किया जाता है और प्रत्येक विभाग अथवा शाखा के लिए प्रतिमाह अथवा तिमाही के लिए योजना को विभाजित किया जाता है। इस प्रकार योजना अपने अन्तिम रूप में प्रकट होती है।
(7) आवश्यक उप योजनाओं का निर्माण-मूल योजना के क्रियान्वयन में सहायक या उपयोजनाओं का हाथ होता है। अतः सभी उप-योजनाओं का निर्माण करना चाहिए, अर्थात मूलयोजना को प्रभावशाली ढंग से क्रियान्वयन करने के लिए संस्था के विभिन्न विभागों (क्रय, विपणन, उत्पादन, कार्मिक, वित्त एवं विक्रय आदि) की उपयोजनाओं का निर्माण किया जाना आवश्यक है।
(8) क्रियाओं के समय एवं क्रम का निर्धारण-नियोजन प्रक्रिया में समय एवं क्रम का विशेष महत्त्व है क्योंकि यह योजनाओं एवं कार्यक्रमों को ठोस रूप प्रदान करता है। इसलिए इस कदम में प्रत्येक क्रिया का समय निर्धारित किया जाता है कि किस समय नियोजन का कार्य प्रारम्भ हो, कब तक उसको पूरा किया जाये, पहले कौनसी क्रिया शुरू हो और बाद में कौनसी तथा कब समाप्त होगी। ऐसा करने से सब साधन, व्यक्ति, सामग्री एवं बाजार ठीक समय पर उपलब्ध होंगे अन्यथा समय-समय पर उत्पादन में बाधा आयेगी।
(9) क्रियान्वयन में सहयोग प्राप्त करना-योजनाओं के अच्छे परिणाम प्राप्त करनेके लिए एवं योजनाओं का पूर्णतः क्रियान्वयन करने के लिए संस्था के प्रत्येक व्यक्ति का सहयोग प्राप्त करना चाहिए। इसके लिए संस्था से संबंधित प्रत्येक व्यक्ति को नियोजन से अवगत करवाना चाहिए, योजना के बारे में समझाना चाहिए और सुझाव आमन्त्रित करने चाहिए। तब ही वे योजना को कार्यान्वित करने में सहयोग प्राप्त कर सकते हैं।
(10) अनुवर्तन-नियोजन के क्रियान्वयन तक ही नियोजन प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो जाती है अपितु यह बाद में भी चलती रहती है। इसके लिए यथासमय नियोजन के परिमाम ज्ञात करने के लिए निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिए। यदि वांछित परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं। तो इसके कारणों को ज्ञात करना चाहिए और उनको दूर करके वांछित उद्देश्य प्राप्त करने चाहिए।